सनातन को समाप्त | जीभ से महासागर को सोखने की मूर्खता पूर्ण कल्पना

बलवंत सिंह राजपूत
(पूर्व) कुलपति ;
अध्यक्ष , राष्ट्रीय चिंतना, ग्रेटर नोएडा।

टेन न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा (16 अक्टूबर 2023): सनातन के संदर्भ में अनेक अज्ञानी एवम अहंकारी राजनीतिज्ञों द्वारा अनर्गल व्यक्तव्य दिए जा रहे है । इन ईर्ष्या जनित मिथ्या प्रलापो का चिरंतन एवम सारस्वत सनातन जीवन पद्धति और मौलिक दर्शन पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। फिर भी जन साधारण के लिए अति सरल शब्दों में सनातन को समस्त विश्व के कल्याण एवम शांति के जीवन दर्शन के रूप में बताया जा सकता है जिसमे
सर्वे संतु सुखिनः सर्वे संतु निरामय ।
और अंतरिक्ष से लेकर पृथ्वी, जल और औषधि की शांति की बात कही गई है। वसुधैव कुटुंबकम् की बात कही गई है। विश्व के कल्याण की बात कही गई है।ऐसी परिकल्पना विश्व के किसी अन्य जीवन दर्शन में नही है।

सनातन वैदिक धर्म है, चिरंतन एवम सारस्वत है तथा इसका आधार अनेक वैदिक ऋषियों की निरंतर वैज्ञानिक शोध पर आधारित परंपराएं है। सरल शब्दों में सनातन का अर्थ गौ, गंगा एवम गायत्री की पूजा, अनहत नाद ( ॐ) को सदा ह्रदय में धारण रखना तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास है। हमारे सारे वैदिक दर्शन इन्ही सिद्धांतो को प्रतिपादित करते हैं।

सनातन जीवन पद्धति वह है जिसमे चाहे उपासना का मार्ग कोई भी हो( ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग अथवा कर्म योग) पर पूरा जीवन चार पुरूषार्थ ( धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष) से संचालित होता है। जिसके अनुसार जब धर्म का नियंत्रण अर्थ और काम पर दृढ़ता से होता है तो व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। विश्व के किसी भी अन्य जीवन दर्शन में धर्म ( पंथ नही) का कोई पर्यायवाची शब्द नहीं है और न ही धर्म की कोई सारस्वत अवधारणा ही है। इसी प्रकार मोक्ष की कोई भी परिकल्पना किसी अन्य जीवन दर्शन में नही है। मोक्ष में परमात्मा से एकरूपता के घनीभूत परमानंद की अवधारणा केवल सनातन में ही है।
जो अज्ञानी सनातन ( और उसके मानने वाले हिंदू) को समाप्त करने के अनर्गल प्रलाप करते है वे जीभ से महासागर को सोखने की मूर्खता पूर्ण कल्पना करते है।
सनातन संस्कृति से ही विश्व में शांति स्थापित हो सकती है और विश्व बंधुत्व स्थापित हो सकता है।

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