टेन न्यूज नेटवर्क
ग्रेटर नोएडा (20 अगस्त 2023): टेन न्यूज नेटवर्क की खास पेशकश ‘सच्ची बात: प्रोफेसर विवेक कुमार के साथ’ के 78 वें एपिसोड में प्रिंस इंस्टीट्यूट ऑफ इनोवेटिव टेक्नोलॉजी, 9- नॉलेज पार्क- 3, ग्रेटर नोएडा के प्रांगण में ‘भारतीय न्याय संहिता: बदलाव की आवश्यकता और लागू करने की चुनौतियों’ को लेकर व्यापक, सारगर्भित एवं सारपूर्ण चर्चा हुई। उक्त कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर विवेक कुमार, हेड एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एमिटी विश्वविद्यालय, समाजसेवी एवं राष्ट्रीय चिंतक ने की। कार्यक्रम की अध्यक्षता पुष्पेंद्र कुमार ने किया
उक्त कार्यक्रम में वक्ता के रूप में उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता अजेय कुमार गुप्ता; रि. मेजर सुदर्शन सिंह; पूर्व कुलपति एवं अध्यक्ष राष्ट्रचिंतना बीएस राजपूत सहित कई अहम और गणमान्य लोग उपस्थित रहे। सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए और आईपीसी, सीआरपीसी एवं साक्ष्य अधिनियम में हो रहे बदलावों के मद्देनजर अपने विचार रखे।
इस कड़ी में राष्ट्र चिंतना के अध्यक्ष एवं कुमायूं गढ़वाल विश्वविद्यालय के तीन बार के कुलपति एवं उत्तर प्रदेश उच्च सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत ने कहा कि आज की चर्चा का विषय काफी महत्वपूर्ण है। मैं काफी दिनों से सोचता था कि यह जो आईपीसी और सीआरपीसी हैं ये अंग्रेजों के बनाए हुए हैं और उन्होंने अपने अनुसार इसे बनाया था। आजादी के बाद ही इसे बदलने की आवश्यकता थी लेकिन देर आए दुरुस्त आए। गृह मंत्री जी ने इसे लाया है। न्यायपालिका की एक अहम भूमिका है, कोई भी व्यक्ति जो पीड़ित हो बस एक ही बात कहता है न्याय पर मुझे भरोसा है।
आगे उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का भी एक सीमारेखा है, न्यायपालिका को भी अपने सीमा रेखा के भीतर रहना चाहिए उसे नहीं पार करना चाहिए जो कई बार देखने को मिल जाता है। देशहित सर्वोपरी होना चाहिए।
उक्त कार्यक्रम के अध्यक्ष पुष्पेंद्र जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 1947 में हम स्वतंत्र तो हुए थे लेकिन वो लगता था जैसे कि पावर ट्रांसफर था वास्तविक स्वतंत्रता अब कुछ वर्षों से देखने को मिल रहा है।
उक्त अवसर पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अजेय गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि मैं एक अधिवक्ता हूं तो हमारी जिम्मेदारी है कि अधिनियम, साहिंता और बिल किसे कहते हैं इसे आपके समक्ष रखूं। आगे अधिवक्ता गुप्ता ने अधिनियम, साहिंता और बिल को परिभाषित किया।
हमारा देश लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी में रहा, हम सभी जानते हैं कि उन्होंने इतने योजनाबद्ध तरीके से काम किया की वो हमें गुलामों की बेड़ियों में जकड़ कर रखा और किसी भी प्रकार के आवाज उठाए जाने पर उसे कुचल दिया गया। 1800 की शताब्दी में भारत में आजादी की लड़ाई की बिगुल बज चुकी थी तब उन्होंने वर्ष 1836 तक उन्होंने चार्टर एक्ट के माध्यम से लॉ कमीशन बना। 1860 में आईपीसी लाया गया, उस नियम में विशेष रूप से यह व्यवस्था की गई की यदि कोई गलती किसी अंग्रेजों से हो तो कम से कम सजा मिले और भारतीयों के लिए सख्त से सख्त प्रावधान लागू किया गया।
यह भी एक अजूबा है कि आईपीसी 1860 में आ गया और सीआरपीसी 38 वर्ष बाद 1898 में लाया गया। 1860 से 1898 तक भारतीयों को केवल आईपीसी के माध्यम से भारतीयों को कुचला गया। 15 अगस्त 1947 में हम आजाद हुए लेकिन क्या वो पूरी आजादी थी। आजादी से पहले उन्होंने ‘इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट’ ब्रिटिश के संसद में पारित किए गए तो जो नियम ब्रिटिश संसद में पारित हुए तो पूर्ण आजादी कैसे हुई?
आगे उन्होंने कहा कि न्यायाधीश भी तभी न्याय दे पाएंगे जब आईपीसी और सीआरओसी एक साथ चले और अधिवक्ता भी आपको तभी न्याय दिला सकेगा जब साक्ष्य अधिनियम भी आईपीसी, सीआरपीसी के अनुरूप चले। उक्त मामले को लेकर साल 2019 में ही गृह मंत्री ने उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और विधि विश्वविद्यालयों से सुझाव मांगे और सबों ने अपने अनुसार सुझाव दिए। गहन विचार मंथन के बाद इसे पेश किया गया है। उसके उपरांत अधिवक्ता अजय गुप्ता ने बारीकी से और विस्तार पूर्वक पूरे कानून को समझाया।
इस अवसर पर रि. मेजर सुदर्शन सिंह ने कहा कि आज हम यहां इस कानून के विषय में और आगामी चुनौतियों के बारे में जानने के लिए एकत्रित हुए हैं। हमें यह भी जानना है कि पूर्व में क्या क्या टूल्स प्रयोग किए गए किसने किया वो जानना बहुत आवश्यक नहीं है परंतु मैटर जानना अधिक आवश्यक है। कोई भी कानून यदि संस्कृति के साथ ना चले तो कठिनाई होगी इसलिए आवश्यकता है कि कोई भी कानून ऐसा हो जो लोगों के लिए सहज हो, जिसमें प्राकृतिक न्याय हो तो वह स्थाई होगा। कई उदाहरण प्रस्तुत कर उन्होंने इसे बारीकी से समझाया।
उक्त क्रम में प्रोफेसर बबलू सिंह रावत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जो संशय समाज में है वो इसलिए है क्योंकि यहां अलग अलग विचारधारा के लोग रहते हैं। यहां सत्ता पक्ष और विपक्ष है दोनों की अपनी विचारधाराएं है दोनों को ये लगता है कि जब भी कोई नया कानून आता है सबसे पहली चिंता होती है कि इसका दुरुपयोग न हो।
उक्त अवसर पर टेन न्यूज नेटवर्क के संस्थापक गजानन माली ने अपने विचार रखते हुए कहा कि इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उच्चतम न्यायालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुआ, वहां भी इन नियमों में हुए बदलावों को लेकर चर्चा हुई।
सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए और इस कानून में बदलाव की आवश्यकता एवं चुनौतियों को लेकर सारपूर्ण पर चर्चा की। प्रिंस इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष डॉ प्रोफेसर भारत सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।।