तन-मन-मानस: श्रंखला की प्रथम कड़ी का आयोजन सम्पन्न

श्री अरविन्द आश्रम का पावन वातावरण और उसमें श्रीरामचरितमानस के सामाजिक एवं व्यवहारिक पक्ष पर सार्थक वक्तव्य, मानों तन-मन-मानस हो गया हो। दीपक श्रीवास्तव ने तन-मानस-मानस श्रृंखला की प्रथम कड़ी में जीवन के अनेक महत्वपूर्ण सन्दर्भों से लोगों का परिचय कराया। लगभग एक घण्टे तक लगातार चले वक्तव्य के दौरान सभागार में उपस्थित लोग मानस के रस में इस कदर खोये रहे कि किसी को अपनी सुधि भी न रही। परत-दर-परत जीवन के विभिन्न रहस्य खुलते रहे तथा लोग मानस की तरंगों में आनंदमग्न रहे।

वक्तव्य में दीपक श्रीवास्तव ने सती-मोह तथा पार्वती-संदेह की तत्वपरक व्याख्या की। उन्होंने बताया कि मन में सन्देह के कारण बुद्धि भ्रम उत्पन्न करती है तथा व्यक्ति इसी के वशीभूत कुतर्क करता है जो आगे बढ़कर चित्त में मोह का रूप धारण कर लेता है। शिव-तत्व इन्ही तीन का सार्थक हल प्रस्तुत करता है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटने वाली घटनाओं के समाज पर दूरगामी परिणाम होते हैं।

सिद्धान्त नियत होते हैं तथापि कालखंड, समाज एवं युगधर्म के आधार पर रचनाकार समाज की आवश्यकतानुसार इन्हे पुनः रचते हैं जिन्हे समाज अपनाकर अपनी दिशा चुनता है।वक्तव्य में सकाम एवं निष्काम कर्म की प्रभावी व्याख्या ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत में बताया गया कि समाज में उपस्थित भ्रम पर ज्ञान की तलवार ही काट सकती है किन्तु ज्ञान व्यक्ति में अहंकार की उत्पत्ति का कारण भी बन जाता है अतः जीवन में वैराग्य का होना आवश्यक है। जब ज्ञान सांसारिक मायारुपी भ्रम से युद्ध करता है तब वैराग्यरूपी ढाल ही भक्ति की रक्षा करती है।

श्री कृष्ण मोहन जी ने कहा कि वर्तमान भौतिकवादी समाज में चरित्र निर्माण हेतु इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन अत्यन्त आवश्यक है तथा उन्होंने कार्यक्रम में अधिकाधिक लोगों से सम्मिलित होने की अपील की। शैली शर्मा जी ने बताया कि श्री अरविन्द सोसाइटी में  “तन-मन-मानस” शृंखला के अंतर्गत प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार को इसका आयोजन किया जाएगा।

कार्यक्रम में कृष्ण मोहन, तरुणा नायक, शैली शर्मा, अंजलि, यश भास्कर, तुषार गुप्ता, शुभम समेत अनेक गणमान्य विभूतियाँ उपस्थित रहीं।

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