आसीफा के हत्यारों को तुम फाँसी पर लटका दो ।
जिस्म नोचने वालों का तन तुम कुत्तों में बँटवा दो ।
लेकिन कुछ बातों पर मेरा मन व्याकुल हो जाता है ।
नारी की चीख़ो पर हृदय भीतर तक रो जाता है ।
एक बात है मुझे पूछनी, भारत के विद्वानों से ।
केवल जिस्म नुमाइश करते बॉलीवुड के खानो से ।
जो घाटी में घटा वहाँ पर, दुराचार क्या पहला है ?
और आसीफा के संग में ये बल्तकार क्या पहला है ?
तुमको दोषी इस भारत में बस काफिर ही दिखता है ?
दुराचार का घर केवल तुमको मन्दिर ही दिखता है ?
बेटी का जीना मुश्किल था वह “कैराना” भूल गए ?
सहारनपुर की मस्जिद का गंदा मौलाना भूल गए ?
सोलह दिसम्बर वाली वो बदनाम शाम क्या याद नही ?
योनि में रौड घुसाने वाला फ़िरोज़ नाम क्या याद नही ?
मानवता के हरे वृक्ष के सारे डाले छाँटे थे ।
काश्मीर में हर हिन्दू बेटी के स्तन काटे थे ।
हे भारत के विद्वानों हर अत्याचार पे बोलो तुम ।
हिन्दू बेटी का लगा यहाँ मीना बाजार पे बोलो तुम ।
संविधान में लिखी हुई जो उस समता पर रो लो तुम ।
हजार साल जो ज़ुल्म हुए उस निर्ममता पर रो लो तुम ।
मुग़लकाल में हिन्दू संग हर काम वो गंदा करते थे ।
गर्म दहकते अंगारे योनि पर ठंडा करते थे ।
रेपिस्ट बता हर हिन्दू को बुद्धिजीवी हरसाये है ।
लेकिन वो आतंकवाद का धर्म बता ना पाये है ।
रोज मोम पिघलाकर बेशक श्रद्धा तुम अर्पण कर लो ।
हाड़ी रानी, पदमा का भी हिन्दू तुम तर्पण कर लो ।
सारे न्यूज चेनलों से अब मुझको बदबू आती है ।
भारत की सरहद से गहरी साजिश की बू आती है ।
नकली फूल हमें कीचड़ का कमल बताने निकले है ।
जो सर से पाँव तक रंगे हुए वो धवल बताने निकले है ।
सत्य सनातन धर्म यहाँ बस मानवता सिखलाता है ।
कन्या को देवी की भाँति हर घर पूजा जाता है ।
जितनी घटना घटी रेप की सारी घटना आम करो ।
केवल एक बात लेकर ना हर हिन्दू बदनाम करो ।
संतो की इस पुण्य धरा पर दाग नही लगने दूँगा ।
हिन्दू हित की सजी चिता में आग नही लगने दूँगा।
— अमित शर्मा