मायावती की समानता की सोच, कथनी और करनी में कितनी असमानताएं | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट

टेन न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा (23 अप्रैल 2024): दलितों के उत्थान और कल्याण की बात करने वाली बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती एक सशक्त दलित नेता के रूप में जानी जाती हैं। जहां एक तरफ बहन मायावती समाज में गरीबों एवं दलितों के शोषण, छुआछूत और असमानता के खिलाफ प्रखरता पूर्वक संघर्ष करती दिखती हैं तो वहीं दूसरी तरफ मायावती का एक दूसरा रूप भी देखने को मिलता है, जिसमें वह अपनी खुद की पार्टी में समानता स्थापित नहीं कर सकी। बसपा सुप्रीमो मायावती को अक्सर चुनावी मंचों या अन्य किसी भी मंचों पर अपने पार्टी के सभी नेताओं से आगे सिंहासन पर बैठे हुए देखा जाता है, वहीं उनकी पार्टी के सभी नेता उनके सिंहासन के पीछे जी हजूरी करते नजर आते हैं।

देशभर में इन दिनों चुनावी माहौल है, और चुनाव की प्रक्रिया 19 अप्रैल से आरंभ हो चुकी है। वहीं राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र में 26 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान होना है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के दिग्गज यहां आकर अपने प्रत्याशी के लिए जनसभा कर रहे हैं। इसी क्रम में सोमवार, 22 अप्रैल को बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र से अपने बसपा प्रत्याशी ठाकुर राजेंद्र सिंह सोलंकी के लिए जनसभा करने सिकंदराबाद में पहुंची। जहां पर जनसभा के दौरान साफ तौर से देखा गया कि मायावती का जो सिंहासन था, उनके बैठने का स्थान था वह सबसे आगे था और बाकी उनके पार्टी के प्रत्याशी और अन्य नेता उनके सिंहासन के पीछे बैठे नजर आए। मायावती अक्सर समानता की बात करती हैं। वह दलितों की नेता भी इसी कारण से बनी थी और मायावती कहती हैं कि समाज के बड़े तबकों के द्वारा हमेशा दलित और निचले तबकों के लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। आज के समाज में छुआछूत जैसी कुप्रथा तो समाप्त हो चुकी है, लेकिन बहन मायावती के मन में शायद वह अभी भी कहीं बैठी हुई है। तभी तो वह अपनी पार्टी के सभी नेताओं को पीछे बिठाती है और खुद सबसे आगे अपना सिंहासन के तौर पर कुर्सी पर बैठती है। उनकी पार्टी का कोई भी नेता उनके अगल-बगल बैठा हुआ दिखाई नहीं देता है।

वहीं बात अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की करें तो चाहे बीजेपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो, चाहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हो या फिर कांग्रेस, सपा या अन्य राजनीतिक पार्टी सभी के नेता अपने पार्टी के नेताओं के साथ एक ही मंच पर एक ही लाइन में बैठे नजर आते हैं। लेकिन मायावती का जलवा थोड़ा अलग है, वह सबसे आगे बैठती है और अपने अन्य नेताओं को पीछे बिठाती है। और तो और वह लोगों / बहुजन समाज के बीच जाकर कभी सीधा संपर्क नहीं करती है । कितनी बार आप ने दादरी को भेंट दी जोकि आप का गृह नगर है । दादरी के बहुजन समाज के उत्थान के लिए हाल फ़िलहाल में आप ने क्या प्रयास किया । बहुजन समाज पार्टी वन वुमन पार्टी लगती है । जहां किसी अन्य महिला या पुरुष को अपने बराबर या ऊंचा उठने नहीं देती है । कहां है बहन जी का समानता ?

 

आपको क्या लगता है कि समाज में दलितों के लिए समानता की लड़ाई लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और मायावती स्वयं दूसरे से भेदभाव या असमानता की भावना रखती है। समानता का ढोल पीटने वाली मायावती अपनी पार्टी में समानता रखने में क्यों चूक गई और अपने आप को सबसे आगे दिखाने में इतना भी याद नहीं रहा कि कि पार्टी के अन्य नेता भी उनकी पार्टी का ही एक हिस्सा हैं क्या उनका हक नहीं है उनके बराबर या अगल-बगल में बैठने का आपको क्या लगता है। बहन मायावती जो दलितों को समाज में समानता का अधिकार दिखाने की बात करती है तो फिर वह खुद अपनी पार्टी में क्यों नहीं समानता दिखाती है?

 

बहन जी का सियासी सफर

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का जन्म गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र के दादरी विधानसभा के बादलपुर गांव में 15 जनवरी 1956 को एक दलित परिवार में हुआ था। मायावती ने बीए, एलएलबी और बी.एड. की पढ़ाई की। साथ ही उन्होंने राजनीति में कदम रखने से पहले एक शिक्षिका के रूप में काम किया है। मायावती ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से की और पार्टी को राष्ट्रीय स्तर तक लेकर गई। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनीं। इस खबर पर आपकी क्या राय है, कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।।

 


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