प्रधानमंत्री मोदी का सपना है 1000 साल के बाद का भारत, हमें अपना साथ देना चाहिए: वाई.के.गुप्ता, प्रो. चांसलर, शारदा विश्वविद्यालय

टेन न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा (09 अप्रैल 2024): शारदा विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के परिसर में मंगलवार, 09 अप्रैल को “भारतीय संस्कृति वैश्विक केंद्र” के लॉन्चिंग इवेंट कार्यक्रम का शानदार आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में शारदा विश्वविद्यालय के प्रो. चांसलर वाई.के.गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि आज इस इवेंट लॉन्च का आयोजन एक पवित्र दिवस के अवसर पर किया जा रहा है। आज विक्रम संवत 2081 यानी नववर्ष की शुरुआत हो रही है। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी विशिष्ट मेहमानों का तहे दिल से धन्यवाद किया और कहा कि सभी वक्ता गण भारतीय संस्कृति एवं भारतीय परंपराओं में अपनी एक खास पहचान रखते हैं। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि सौभाग्य से सनातन संस्कृति का हिस्सा रहा हूं। हमारे यहां जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक प्रकार की परंपराएं मौजूद हैं। इन सभी विधाओं का परिचय जब हमें घर परिवार एवं पंडित जी से मिलता था तो बड़ा ही हर्ष होता था। यह परंपराएं आज की नहीं बल्कि सैकड़ो वर्ष पहले की है। और ऋषि, मुनियों के द्वारा हमें बहुत सारी परंपराएं एवं गतिविधियां धरोहर के रूप में प्राप्त हुई है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भी भारतीय परंपरा संबंधी ज्ञान का समावेश देखने को मिलता है। हालांकि शिक्षण संस्थानों के द्वारा अलग-अलग प्रोफेशन में छात्रों को तैयार किया जाता है, परंतु समाज के प्रति उनके उत्तरदायित्व का निर्वहन वह तभी अच्छे से कर सकेंगे जब उन्हें भारतीय परंपराओं एवं भारतीय संस्कारों का ज्ञान होगा। भारतीय परंपराओं एवं ज्ञान के आधार पर प्रोफेशनल व्यक्ति के मन में और अधिक निष्ठा होगी।

आगे उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति अपने आप में बहुत मजबूत रही है, भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। नालंदा एवं तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय भारत के पास थे। हालांकि आज यह सब नहीं है परंतु अभी भी हमारे पास वह भारतीय ज्ञान परंपरा मौजूद है, जिसके दम पर हम आने वाले भारत को विश्व गुरु बना सकते हैं। 500 वर्षों की तपस्या के बाद 22 जनवरी को भगवान श्री राम के मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की गई। हम सभी आने वाले 10 साल, 50 साल एवं 100 सालों के विषय में सोचते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आने वाले हजार सालों के विषय में सोचकर कहते हैं कि 1000 साल बाद हमारा भारत कहां होगा। हम सभी को उनके स्वप्न में साथ देना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि हमारा वैदिक परंपरा बहुत महान है और हमारे ग्रंथो में बहुत सारे सवालों के जवाब अपने आप में लिखे हुए हैं। यहां तक कहा जाता है कि भागवत गीता के कई श्लोक आपकी हर समस्याओं का निवारण कर सकते हैं। बस अब हम सभी को आवश्यकता है तो अपने ज्ञान एवं अपनी संस्कृति को अपनाने की। जब अपनी संस्कृति एवं ज्ञान को अपनाएंगे तो अपने आप ही सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

आने वाले समय में भारतीय वैदिक परंपरा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित कई सम्मेलन करने की आवश्यकता भी है, और हम कई ऐसे वक्ताओं के साथ सम्मेलन करेंगे। ताकि उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत की विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान से संबंधित विषयों को करिकुलम में शामिल किया जाए जिससे बच्चों में भारतीय संस्कृति का ज्ञान उत्पन्न हो।

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव दीपक सिंघल से मंच से अपने संबोधन में कहा कि, हम सबों के माता-पिता, दादा -दादी ने भारतीय संस्कृति के बारे में हम सबों को सिखाया है। भारतीय ज्ञान और परंपरा श्रेष्ठ हैं हमारे, कई उदाहरणों के साथ उन्होंने समझाया कि किस तरह से भारतीय संस्कृति एवं परंपरा और ज्ञान सर्वोत्तम है।

इस अवसर पर डॉ सच्चिदानंद जोशी, मेंबर सेक्रेट्री, द एक्सक्यूटिव एकेडमिक हेड नई दिल्ली, ने अपने संबोधन में कहा कि, हमारे यहां जो हिंदी में महीने होते हैं वो चंद्रमा की तिथि से चलते हैं और सभी महीनों में पूरे के पूरे 30 दिन होते हैं जबकि अंग्रेजी कैलेंडर में किसी महीने में 30 दिन होते हैं, किसी में 31 होते हैं और किसी -किसी में 28 होते हैं। अपने मन से औपनिवेशिकता से मुक्ति पाएं, अपने पर गर्व करें। जो कुछ भी मेरे पास विरासत है वो गर्व करने के लायक है। भारत की जो ज्ञान परंपरा है , समृद्ध विज्ञान परंपरा है , न्याय पद्धति है, समृद्ध चिकित्सा पद्धति है यह निसंदेह गर्व करने योग्य है। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने लगा कि गुलामी से मुक्ति पाएं।

आगे उन्होंने कहा कि भारत ने इतने दिनों में दुनिया को बहुत कुछ दिया बस एक चीज हम नहीं कर पाए, हम अपनी विरासत पर गर्व नहीं कर पाएं। अपनी विरासत पर गर्व कीजिए।

उक्त कार्यक्रम में प्रबुद्ध वक्ता के तौर पर दीपक सिंघल, पूर्व मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश; पद्म भूषण प्रो. कपिल कपूर, पूर्व प्रोफेसर, सेंटर फॉर लिंग्विस्टिक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; प्रो.डॉ.जगबीर सिंह, चांसलर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब, भटिंडा; डॉ सच्चिदानंद जोशी, मेंबर सेक्रेट्री, द एक्सक्यूटिव & एकेडमिक हेड, नई दिल्ली; प्रो. हीरामन तिवारी, डीन, अटल बिहारी वाजपेई स्कूल ऑफ मैनेजमेंट & एंटरप्रेन्योरशिप & चेयरपर्सन, सेंटर फॉर हिस्टॉरिकल स्टडीज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; पीके गुप्ता, चांसलर, शारदा यूनिवर्सिटी; वाई.के.गुप्ता , प्रो. चांसलर, शारदा यूनिवर्सिटी; प्रो. डॉ शिबाराम खारा, वाइस चांसलर, शारदा यूनिवर्सिटी; प्रो. परमानंद, प्रो. वाइस चांसलर शारदा यूनिवर्सिटी ने अपने विचार व्यक्त किए।।

 


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