टेन न्यूज नेटवर्क
ग्रेटर नोएडा (12 मार्च 2024): रविवार, 10 मार्च को राष्ट्रचिंतना की 13वीं मासिक गोष्ठी प्रोफेसर आर एन शुक्ला, पूर्व विंग कमांडर भारतीय वायु सेना की अध्यक्षता में ‘विलुप्त होती भारतीय और सामाजिक परंपराएं -भाग 2’ विषय पर ईशान इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सभागार, ज्ञान उद्यान 3 , ग्रेटर नोएडा में आयोजित की गई।
विषय परिचय करवाते हुए एमिटी इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के निदेशक, भारत नवनिर्माण ट्रस्ट के सचिव तथा राष्ट्रचिंतना के संगठन सचिव, प्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा कि वेदों का ज्ञान और परंपराएं पुन स्थापित हों। प्राचीन ऋषि मुनिओं और हमारे पूर्वजों का ज्ञान परिवार में पुनः व्यवहार में लाया जाए।
डॉ डी के गर्ग, मुख्य वक्ता एवं ईशान इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी व ईशान आयुर्वेदिक कॉलेज के संस्थापक और चेयरमैन, ने अपने संबोधन में कहा कि व्यवहारिक ज्ञान हमें बहुत से संभावित खतरों से बचा सकता है। उन्होंने भाव प्रकाश निखंटू तथा दिनचर्या प्रकरणम से उद्धृत कर अनेक जीवन उपयोगी बातें साझा की। उन्होंने कहा कि अगर शरीर पर गर्म पानी ना डालें तो एलर्जी या 50 से 60 बार छींकने की उनकी बहुत पुरानी समस्या हल हो गई। स्नान करते समय साधारण जल में एक चम्मच नमक भी डालकर स्नान करें। नाक के बाल नहीं काटने चाहिए इससे अंधता या आंख के जाले की संभावना हो सकती है। ग्रामीण परिवेश में सर पर बांधने का साफा, रोग आदि से बचाता था और पूजा अर्चना के पश्चात शंख को बजाने से हमारे फेफड़े मजबूत होते थे। प्राणायाम के दौरान कुंभक, रेचक, पूरक की प्रक्रिया में बलपूर्वक श्वास को बाहर निकलने से गायत्री मंत्र बोलने या गिनती बोलने के पश्चात हार्ट की प्रॉब्लम नहीं होती ।
उन्होंने बताया कि ग्रामीण परिवेश में विवाह के दौरान बहू अपनी सास के लिए एक छोटा सा हुक्का भी लाती थी और पीपल को चिलम में भरकर पीने से पुरानी खांसी खत्म हो जाती है, ऐसे ही सौंफ से भी धूम्रपान चिकित्सा का प्रमाण मिलता है।
प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का आचरण का अनुसरण करते हुए हम पतित पावनी गंगा मैया,धरती, गौ, वेद और जननी को पूजनीय एवम वंदनीय मानते हैं। उन्होंने कहा कि धरती से 2 फीट नीचे की आधा किलो या 1 किलो मिट्टी लेकर को चांदनी में रखने और सुबह लेप कर लें, जब धूप में सूख जाए तो स्नान कर लें और फिर उसके बाद तेल लगा लें, ऐसा करने पर बहुत से विषाक्त पदार्थ हमारे शरीर से निकल जाएंगे।
हमारे प्राचीन पर्व संकल्प पर्व भी होते थे जैसे निर्जला एकादशी परिश्रम से अर्जित धन को जल की व्यवस्था करने का एक भाव होता था। धन के तीन प्रकार के उपयोग हैं ,जैसे दान भोग और विनाश, तो इसीलिए सामाजिक कार्यों में धन का उपयोग करने को प्रेरित किया जाता था। जीवन के अंतिम सत्य मृत्यु के पश्चात भी मृतक को नहलाना जीवन की खोज का अंतिम प्रयास रहता था। सबसे उत्तम दान होता था विद्याधन, इसलिए गुरु को ईश्वर तुल्य माना जाता था और समाज के सहयोग से गुरुकुल चलते थे। अंतिम संस्कार के समय भी शरीर के वजन के बराबर घी होना चाहिए या घी और सामग्री का वजन व्यक्ति के शरीर के बराबर होना चाहिए।
उन्होंने प्रतिभागियों से एक यक्ष प्रश्न किया कि दलित कौन है, अछूत कौन है। दर्शन विज्ञान में लिखा है की प्रसव से पूर्व जाति के बारे में कुछ भी सुनिश्चित नहीं है जैसे वेदों मे वर्ण भेद का वर्णन मिलता है ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय और शूद्र। दलित वह हुआ जो दूसरे की दया पर आश्रित हो किसी दूसरे के यहां सेवक हो, नहीं कोई अक्षम व्यक्ति।
प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत, पूर्व कुलपति कुमाऊं और गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में कहा कि विज्ञान आधारित ज्ञान के बल पर प्राचीन परंपराओं की व्याख्या नहीं कर सकते। ऐसा कोई भी प्रयास बच्चों के उंगलियों से समुद्र नापने के कोशिश के समान होगा। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक व मंत्र शक्ति के द्वारा भी संतान उत्पत्ति हो सकती थी।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर आर एन शुक्ला ने कहा की विज्ञान प्रमाण पर आधारित है विज्ञान जो देखता है इस पर विश्वास करता है। परंतु प्राचीन समय का ज्ञान हमारा श्रुति पर आधारित था, तो विभिन्न कालखंड में अधिक प्रमाण नहीं मिलते। उन्होंने बताया कि खड़ाऊ पहनने से मधुमेह का निवारण हो सकता है। आधुनिक काल में यदि आपकी एक संतान भी उत्तम है, तो वह सर्वोत्तम योग है।
गोष्ठी में राजेन्द्र सोनी, उमेश पांडे, अश्वनी त्रिपाठी, सरोज अरोरा, अधिवक्ता अजेय कुमार गुप्ता, डॉ बी के श्रीवास्तव, डॉ उमेश, डॉ नीरज कौशिक, सरोज तोमर, जूली, धर्म पाल भाटिया, निधी माहेश्वरी, मीनाक्षी, के के मिश्रा, ज्योति सिंह, शकुंतला गॉड, माया कर्ण, डॉ धर्मेंद्र गर्ग, रविन्द्र भाटी, प्रो. सतीश चंद्र गर्ग, वीरेंद्र स्वरूप सक्सेना, माधुरी, सुनीता, डॉ एल बी प्रसाद, संगीता सक्सेना, विनीता शर्मा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।।
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