“विलुप्त होती भारतीय सांस्कृतिक परंपराएं” विषय पर राष्ट्रचिंतना की गोष्ठी में हुई व्यापक चर्चा

टेन न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा (19 फरवरी 2024): रविवार, 18 फरवरी को राष्ट्रचिंतना की बारहवीं गोष्ठी “विलुप्त होती भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराएं” विषय पर ईशान इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के सभागार में प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत, पूर्व कुलपति कुमाऊं व गढ़वाल विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में आयोजित हुई। डॉ डी के गर्ग, चेयरमैन, ईशान ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। विषय परिचय करवाते हुए प्रोफेसर विवेक कुमार, सचिव भारत नवनिर्माण ट्रस्ट और संगठन सचिव राष्ट्रीय चिंतना ने कहा कि पश्चिम के अंधानुकरण की वजह से हम अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं से विमुख होते जा रहे हैं।

डॉ डी के गर्ग ने अपने संबोधन में बताया की भारतवर्ष की सामाजिक एवम सांस्कृतिक परंपराएं विज्ञान सम्मत हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि दूल्हा दुल्हन को मेहंदी और हल्दी लगाई जाती है उसकी वजह से अनेक संक्रमण के रोग नहीं पनपते। बड़ अमावस से दो महीने पश्चात करवा चौथ आती है। अगर हम अपने पर्वों के वैज्ञानिक पक्ष को समझें तो आधुनिक काल के बहुत से संकटों जैसे संतानोत्पत्ति में परेशानी आदि से बचे रह सकते हैं । अमावस की रात्रि के पश्चात ही अस्थमा की अधिकता देखी जाती है। शरद पूर्णिमा पर रात्रि 12:00 बजे खीर का सेवन करने से अस्थमा रोग नहीं होगा। शरीर के नौ द्वारों को संयमित आचरण व सात्विक आहार से पवित्र करने को ही नवरात्र कहते हैं। नवरात्र के व्रत रखने के पश्चात डेंगू या किसी भी लंबी अवधि के बुखार में कमी देखी गई। होलिका पर्व पर गांव के बाहर उत्तर दिशा में जावित्री, लौंग और त्रिफला से होलिका दहन करने से कीट पतंगे कीटाणु वातावरण में नहीं पनपते। ऐसे ही टेसू मिश्रित जल विषाणु नाशक है। शंकर के उद्घोष से स्नायु तंत्र मजबूत होता है, नाक कान के रोग और तुतलाने जैसी व्याधि में फर्क पड़ता है। वातावरण में जहां तक संघ की ध्वनि जाती है, वहां तक मच्छर मर जाते हैं या बेहोश हो जाते हैं। तिलक लगाने से हमारी तीनों नाडीयां इडा, पिंगला और सुषुम्ना सक्रिय हो जाती हैं तथा शरीर के सातों चक्र व्यवस्थित करने में सहायक होती हैं। वैलेंटाइन उत्सव पश्चिमी प्रभाव के कारण हमारे स्नातनी पर्व बसंत पंचमी का ही एक विकृत स्वरूप है। प्रोफेसर गर्ग ने सभी हिंदुओं को अपने घरों में वेद उपवेद उपनिषद् आदि रखने और उनके स्वाध्याय की प्रेरणा दी।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत ने बताया कि उन्होंने भी वेद पर 50 शोध पत्र लिखे हैं जो विज्ञान विश्व में नहीं है वह भी वेद में मिल जाएगा। वैदिक वाक्य स्वयं ही अपने आप में प्रमाण है, पुरुष सूक्त का प्रयोग करके वेद को समझा जा सकता है। चार वेद तथा चार उपवेद भी विज्ञान का स्रोत है । धनुर्वेद शुद्ध विज्ञान है । गंधर्ववेद स्थापत्य विज्ञान है । सरस्वती की वीणा को समझने के लिए स्ट्रिंग की वाइब्रेशन का अध्ययन आवश्यक है। 6 वैदिक दर्शन हैं, चार आयुर्वेदिक दर्शन है बिग बैंग थ्योरी चारवाक दर्शन पर ही निर्मित है लेकिन बिना चेतना के विज्ञान के चारवाक का विज्ञान संपूर्ण नहीं है। चेतन तत्व आवश्यक है आज के विज्ञान की सीमाएं हैं, अवतार की बात को हमारे ज्ञान ने कभी स्वीकार नहीं किया समझौता करने से रूढ़ियां पैदा होती हैं और यही रूढ़ियां बाद में सामाजिक प्रदूषण, आध्यात्मिक प्रदूषण व शैक्षिक प्रदूषण का कारण बनती हैं। जिनका दुष्प्रभाव छद्म किसानों के देशद्रोहियों के साथ मिलकर राष्ट्र विरोधी आचरण व संदेश खाली में एक महिला नेत्री के राज में मातृशक्ति पर हो रहे दुष्कर्म जैसे अत्याचार पर समाज की मौन रखने की प्रवृत्ति किसी बड़े संकट की सूचक है।

गोष्ठी में डॉ विश्वदीपक वाघेला, डॉ एल बी प्रसाद, डॉ नीरज कौशिक, राजेन्द्र सोनी, सरोज तोमर, राजेश बिहारी, डी पी भाटिया, नरेश गुप्ता, गजानन माली, मेजर सुदर्शन, मेजर निशा, डॉ एम के वर्मा, विजय भाटी, डॉ हरमोहन, जूली, कांति पाल, संगीता वर्मा, अवधेश गुप्ता, आनंद प्रकाश, अनिल आदि प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।।

 

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