लखनऊ में चल रहे नेशनल बुक फेयर के उदघाटन में राज्यपाल रामनाईक ने पीसीएस अधिकारी शैलेन्द्र कुमार भाटिया के प्रथम हिंदी 152 कविता संग्रह " सफेद कागज " का विमोचन किया । इस पुस्तक में रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी बातें के अनुभवों को कविताओं में लिखा गया है । डॉ विधाकांत तिवारी ने भूमिका लिखते हुए कहा है । कि गांव,शहर, यथार्थ के विविध रूप, भरस्टाचार अराजकता श्रमिक की दुर्दशा , मूल्यह्रास, जातिय अंहकार, न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था की विसंगति, कलाकारों का शोषण, शिक्षा क्षेत्र में पतन , स्त्री की मानसिकता, शोषण की पराधीनता का यथार्थ, में सफेद कागज दूसरा रागदरबारी प्रतीत होता है । डॉ कुश चतुर्वेदी फरमाते है । बापू, गांव, पेड़, गंगा ,किसान ,कचहरी, बेटियां, नारी, स्त्री ,माँ, पिता, अन्नदाता जैसी नाम हमारी जिंदगी का हिस्सा है । इन्ही भावो को पिरोकर शैलेन्द्र जी ने कविताएं बनाई है । ये सफेद कागज किताब अपनेआप में बहुत कुछ कहे जाती है। इस किताब में 152 कविताओं का संग्रह है ।
ज्ञात हो कि शैलेन्द्र कुमार भाटिया का जन्मस्थल गोरखपुर के साहो गौरा गांव में हुआ था। और वर्तमान में स्थाई निवास रंधोली ,जनपद – बस्ती है शैलेन्द्र जी की पढ़ाई योग्यता काफी अच्छी रही है। इन्होंने मास्टर इन कप्यूटर साइंस सॉफ्टवेयर, तथा एम, ए ,(समाज शास्त्र ) इनके पिता स्व- श्री बंसीधर भाटिया रंधोली के स्तिथ इंटर कॉलिज में प्रधानाचार्य के साथ वे प्रगति शील किसान भी थे । शैलेन्द्र भाटिया पर शुरू से अपने पिता के जीवन का काफी प्रभाव पड़ा । और उनकी की प्ररेणा से प्रभावित होकर ये उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर डिप्टी कलेक्टर बने। वर्तमान में अपर कलेक्टर के रूप में कार्यरत है । शैलेन्द्र जी को लोकसेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए "शोभना सम्मान" से सम्मानित किया जा चुका है। लोकापर्ण के अवसर पर शैलेन्द्र भाटिया को इस रचना के लिए बधाई दी गयी।