गलगोटियाज विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लिबरल एजुकेशन ने 23 फरवरी को अभिभावक-शिक्षक संवाद एवम् कला-महोत्सव का भव्य आयोजन किया । गलगोटियाज विश्वविद्यालय के वॉइस चॉसलर मल्लिकाअर्जुन के० बाबू ने अपने हाथों से रिबन काटकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रो० वी० सी० अवधेश कुमार, एडवाइज़र टू चॉसलर रेनु लूथरा, रजिस्ट्रार नितिन गौड, स्कूल ऑफ लिबरल एजुकेशन की डीन डॉ० अनुराधा पाराशर और अतिथियों के रूप में आये हुए सभी अभिभावक गण विशेष रूप से उपस्थित रहे। अभिभावकों, विद्यार्थियों और फ़ैकल्टी मैम्बर्स सभी ने मिलकर के अनेक प्रकार की भारतीय संस्कृति और कला को दर्शने वाली महान विधाओं में भाग लेकर कार्यक्रम को बहुत ही खूबसूरत बना दिया।
इन गतिविधियों में मिट्टी के दीये बनाना, कविता-शायरी पढ़ना, सिंगिंग एवं गरबा नृत्य करना, पेंटिंग और रंगोली आदि बनाना विशेष रूप से शामिल था।
मिट्टी के बर्तन बनाने वाले उपकरण (चॉक) को अपने हाथों से चलाकर जब विश्वविद्यालय के वॉइस चॉसलर मल्लिकाअर्जुन के० बाबू ने, प्रो० वी० सी० अवधेश कुमार ने, एडवाइज़र टू चॉसलर रेनु लूथरा ने, रजिस्ट्रार नितिन गौड ने, स्कूल ऑफ लिबरल एजुकेशन की डीन डॉ० अनुराधा पाराशर ने मिट्टी के बहुत सुन्दर-सुन्दर दीपक बनाये तो वहाँ उपस्थित सभी विद्यार्थियों ने कई बार तालियाँ बजायी। यहाँ पर अपने राष्ट्र के प्रति, अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम और सभी की आत्मीयता साफ झलक रही थी।
अभिभावकों ने विश्वविद्यालय में अपने बच्चों की गतिविधियों के बारे में शिक्षकों से सीधे संवाद किया और अपने बच्चों के बारे में जानकारी हासिल की। उन्होंने इस कार्यक्रम की बहुत-बहुत प्रसंशा की।
स्कूल ऑफ लिबरल एजुकेशन की डीन डॉ. अनुराधा पाराशर ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से अभिभावकों को अपने बच्चों की गतिविधियों के बारे में जानने के साथ-साथ विश्वविद्यालय से भी जुड़ने का एक अच्छा अवसर मिला और अपने राष्ट्र की महान संस्कृति को जानने का भी मौका मिला। विश्वविद्यालय की डायरेक्टर अराधना गलगोटिया ने कार्यक्रम के लिए अपनी शुभकामना व्यक्त करते हुए कहा कि अभिभावक हमारे विश्वविद्यालय के अभिन्न अंग हैं, इसलिए समय-समय पर शिक्षकों को इसी प्रकार से सदैव उनसे संवाद अवश्य करते रहना चाहिए। विश्वविद्यालय के चॉसलर सुनील गलगोटिया ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सभी को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की। और सीईओ ध्रुव गलगोटिया ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम देश के युवाओं (विद्यार्थियों) को अपने राष्ट्र की महान संस्कृति को जानने और उसका अनुकरण करने के लिये बहुत ही प्रेरणा दायक हैं।