ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ को एक महीने की सजा, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

ritu maheshwari

टेन न्यूज नेटवर्क

ग्रेटर नोएडा (08/01/2023): राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की ओर से वर्ष 2014 में लागू आदेश का पालन नहीं करने को लेकर जिला उपभोक्ता प्रतितोष आयोग ने ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण की सीईओ को एक महीने की कारावास एवं 2 हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है।

आयोग ने कहा कि आदेश की प्रति के साथ ही गिरफ्तारी वारंट गौतमबुद्ध नगर पुलिस को प्रेषित किया जाए एवं 15 दिनों के भीतर 2014 के आदेश का पालन कराया जाए।

क्या है पूरा मामला

महेश मित्रा ने 2001 में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में भूखंड आवंटन के लिए आवेदन किया था, इस बाबत मित्रा ने 20 हजार रुपए भी प्राधिकरण में जमा कराए थे, लेकिन उन्हें भूखंड आवंटित नहीं की गई थी। जिसके बाद महेश मित्रा ने साल 2005 में जिला उपभोक्ता फोरम में मुकदमा दायर किया था, साल 2006 में जिला उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया था कि प्राधिकरण के नियमों को ध्यान में रखते हुए महेश मित्रा को 1000 से 2500 वर्ग मीटर तक के भूखंड आवंटित किया जाए। उक्त आदेश के विरुद्ध प्राधिकरण ने साल 2010 में राज्य आयोग का दरवाजा खटखटाया। राज्य आयोग ने अपने आदेश में कहा कि महेश मित्रा द्वारा जमा कराए गए 20 हजार रुपए छह प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाए जाएं। इस फैसले के खिलाफ महेश ने राष्ट्रीय आयोग में अपील दायर की।

राष्ट्रीय आयोग ने 30 मई 2014 को राज्य आयोग के फैसले को गलत ठहराया और जिला आयोग के फैसले को कुछ बदलाव के साथ सही बताया था। राष्ट्रीय आयोग ने अपने फैसले में कहा कि 500 से लेकर 2500 वर्ग मीटर तक के भूखंड महेश को आवंटित किए जाए। महेश ने पुन: साल 2015 में राष्ट्रीय आयोग में न्याय की गुहार लगाई, जिसके बाद साल 2017 में कार्रवाई करते हुए आयोग ने प्राधिकरण का बैंक खाता कुर्क कर लिया था।

चर्चा में क्यों?

शनिवार को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष अनिल कुमार पुंडीर ने आदेश में कहा कि पूर्व में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के आदेश का पालन न करते हुए सीईओ ने उसे लटकाए रखा जिसके लिए वह स्वयं दोषी है।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ का बयान

मीडिया रपटों में दर्ज बयान के मुताबिक ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी ने कहा कि “आदेश में यह स्पष्ट नहीं है कि किस सीईओ के खिलाफ आदेश दिया गया है। यह मामला अबतक मेरे समक्ष नहीं आया है। साल 2016 में कुछ आदेश प्राधिकरण के हुए थे, आदेश की कॉपी अभी नहीं पढ़ी है। विधिक राय लेने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।।

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