क्या बचपन खो गया है कही ?

प्रियंका जैन
प्रिन्सिपल
वेदम प्लेस्कूल & डे केयर
ग्रेटर नोएडा

वक़्त बदला रहा है और क्या आज की आधुनिक दुनिया में बच्चो का बचपन कही छिन गया है ? क्या लॅपटॉप और अटोमेशन के वक़्त ने बच्चो को जल्दी बड़ा कर दिया है या माँ-बाप और स्कूल ने मिलकर बच्चों को बड़ा करने के की जल्दी में उनका बचपन छीन लिया हैं।कभीछीन आपने सोचा है कि परवरिश का यह तरीका कितना सही है कितना गलत?

हमें कैसे पता चलेगा कि हम बच्चे को बहुत ज्यादा लाड़-प्यार कर रहे हैं या उन्हें बिगाड़ रहे हैं? इसके लिए कोई एक तय नियम नहीं है जो सब बच्चों पर लागू हो। हर बच्चा अलग है; अपने आप में अनूठा है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को ज्यादा ताकतवर बनाने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए बच्चों को बहुत ज्यादा कठिनाई में डाल देते हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चों को वो बनता देखना चाहते हैं जो वे खुद नहीं बन पाए। कई बार ऐसा देखा गया है कि कुछ मां-बाप बच्चों से उम्मीद लगा बैठते हैं और फिर उन उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में उनके प्रति बहुत ज्यादा कठोर हो जाते हैं। कुछ मां-बाप ऐसे भी होते हैं, जो बच्चों को बहुत ज्यादा लाड़-प्यार देते हैं और उन्हें नाकाबिल और निरर्थक बना देते हैं। ऐसे बच्चे अपने जीवन में कभी किसी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते।

यह एक तरह की भीतरी समझ है। कितना करना है और कितना नहीं, इसके लिए कोई एक लकीर नहीं खींची जा सकती। हर बच्चे को एक अलग तरह के ध्यान, प्यार और सख्ती की आवश्यकता होती है

अगर वास्तव में हम अपने बच्चों का भला चाहते हैं तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि क्या हम खुद में कुछ बदलाव ला सकते हैं? कहने का मतलब है कि सबसे पहले हमें खुद को बदलना होगा। माता-पिता बनने की चाह रखने वालों को एक साधारण सा प्रयोग करना चाहिए। उन्हें आराम से बैठकर बस अपने बारे में यह सोचना चाहिए कि उनके जीवन में क्या सही नहीं है और वह क्या है जो उनके जीवन के लिये अच्छा साबित हो सकता है, बाहरी दुनिया के बारे में नहीं खुद के बारे में सोचे। वे देखें कि अगले तीन महीने के दौरान वास्तव में वे ऐसा कर सकते हैं या नहीं। इन तीन महीनों के अंदर अगर वे अपने व्यवहार, बोली, आदतों और काम करने के तरीकों में जरा सा भी अंतर ला पाते हैं, तभी वे अपने बच्चों को समझदारी से संभाल पाएंगे। अगर वे ऐसा करने में सफल हुए, तभी वे अच्छे माता-पिता बन पाएंगे। नहीं तो उन्हें किसी और के नासमझी भरे परामर्श या मशविरे का सहारा लेना होगा। दरअसल, इसमें परामर्श जैसी कोई चीज काम नहीं करती। हर बच्चे पर एक खास ध्यान देने की आवश्यकता होती है। यह ध्यान पूर्वक देखना होता है कि उस खास बच्चे के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आप हर बच्चे के साथ एक सा व्यवहार नहीं कर सकते, क्योंकि हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है।

तो सोचिए और बताए की क्या आप तैयार है अपने बच्चे का बचपन लौटने के लिए और उसे एक उज्जवल भविष्या देने के लिए ?

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