*आखिरी घर इसी हिंडन के किनारे है मेरा,*
*जब भी आऊंगा फिर न लौट करके जाऊँगा ।*
*साफ कर लूँ ज़मीं कुछ पेड़ लगा दूँ इस में,*
*इनके साये में यहीं वक़्त मैं बिताऊंगा*
किसी शायर की कितनी खूबसूरत परिकल्पना है हमारे सफीपुर अंतिम स्थान के बारे में । शायर का ख्वाब है कि उसके भौतिक जीवन के बाद वह इसी रमणीक स्थल में रहेगा इसलिए वह चाहता है कि यहाँ साफ सफ़ाई हो और हरे भरे और घने पेड़ लगे हों ।
आज योगेन्द्र कुमार गोयल साहेब जी की अंतिम यात्रा में आया तो देखा कि इस स्थान पर बहुत ही गंदा व झाड़ झंखाड़ से भरा हुआ है ।
प्रोजेक्ट के महाप्रबंधक श्री राजीव जी को फोन किया व वस्तुस्थिति बयां की । उम्मीद से ऊपर कुछ ही क्षणों में साफ सफ़ाई वालों का एक दल उपस्थित हो गया और इस स्थान को सेहरा से चमन बना दिया ।
धन्यवाद 🙏 त्यागी जी ।
आनंद मोहन जी, आप भी अपनी नज़रे इनायत कीजिये और घने पेड़ लगवा कर एक माली की ड्यूटी लगाइए कि वह रोज़ आधा दिन के लिए यहाँ आये और इस चमन को और भी सुंदर बनाने में मदद करे ।
अधिकारियों से निवेदन है कि यहां दिशा सूचक पट्टियां भी लगवा दें जिससे लोग सहूलियत से यहाँ आ जा सकें।
धन्यवाद।
हरेन्द्र भाटी
एक्टिव सिटीज़न टीम