ओम् रायज़ादा
क़ुदरत भी क्या कुछ चीज़ है जाना था गुज़री रात |
जब हो गयी इस शहर में इक ज़ोर की बरसात ||
पत्तों कि झाड़-पौंछ में थे खाम-ओ-ख्वाँ मशगूल |
आंधी के ज़ोर से हटी थी सख्त हुई धुल ||
बाक़ी बचा जो काम बारिश ने किया तमाम |
हाकिम-ए-बागवानी को कुछ मिल गया आराम ||
आती थी शिकायतें के पानी लगाइए |
सूखे हुए दरख़्त हैं उनको बचाइए ||
है घास मर रही बिना पानी के, बाग़ में |
पौधे झुलस रहे हैं सब सूरज की आग में ||
अब हो गए हैं बंद फोन चंद रोज़ को |
हल्का हुआ सर ढो रहा था बड़े बोझ को ||
कूड़ा जो इकट्ठा था यहाँ माह-ओ-साल से |
वो उड़ गया मशरिक में बचे सब बवाल से ||
ससपेंड मुलाज़िम थे जो कूड़े की बात पर |
सब हो गए बहाल सिर्फ एक रात पर ||
बेकार जाता वक्त खम्बों की शिनाख्त में |
हो जाता दर्द खाम-ओ-ख्वाँ यां पैर-ओ-दस्त में ||
आंधी के इल्म ने उन्हें पहचान ही लिया |
जो जड़ से गल गए थे, ज़मीं दोज़ कर दिया ||
वाह वाह री कुदरत, वाह वाह सुबहानअल्लाह |
तू बड़ा मेहरवान है, वल्लाह-रे-वल्लाह ||
अफसर-ओ-हकीमों का तू निगेहवान है |
तेरे करम से यां गधा भी पहलवान है ||
कर दे करम ऐसा के हो बरसात साल-ओ-साल |
इस शहर को कर दे तू बस आंधी से माला-माल |
मिल जायेगी निजात यहाँ बाग़वानी से |
कूड़ा न मिलेगा तेरी ही मेहरवानी से ||