अगर बाजीराव पेशवा को सिर्फ मस्तानी के प्रेमी की तरह देखा जाने लगा तो ये देश का दुर्भाग्य होगा
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पेशवा के महान व्यक्तित्व के बारे में 25 रोचक तथ्य-
1. ‘बाजीराव दी ग्रेट’ का जन्म सन् 1700 में हुआ.. उन्होंने पेशवा का भार 1720 में महज 20 साल की आयु में लिया..
छत्रपति शाहु महाराज ने इस प्रतिभा को पहले ही पहचान लिया था..
2. जिस समय बाजीराव पेशवा बने वह दौर धर्म और समाज के लिए बहोत बुरा था..
पूरा भारत देश मुघलो की चंगुल में फसकर लहुलुहान हो रहा था..उसकी अस्मिता भेड़ियों द्वारा नोची जा रही थी..स्वाभिमानी महिलाओं को जौहर के अलावा कोई विकल्प नही था..
भारत में हिन्दू राजा या तो आपस में बटकर आपस में ही लड रहे थे या अपने फायदे के लिए मुघलो की ग़ुलामी कर रहे थे..
3. तभी बाजीराव ने अपने जबरदस्त कुटनीति के बल पर अय्याशियों में डूबे मुघलो की कमजोरी भाँप ली,
और शाहु महाराज से कहा, की दक्खन की बंजर जमीन छोड़ कर उत्तर में मुघलो का खजाना लूट कर उनको हिन्दुस्तान से खदेड़ने का यही सही समय है..
बाजीराव ने शाहु महाराज से उत्तर में नर्मदा और दक्षिण में कृष्णा नदी पार करने की आज्ञा मांगी..
4. बाजीराव ने सिंदिया, होलकर, गायकवाड़, भोसले जैसे सभी ताकतवर मराठा सरदारों को एकत्रित करना शुरू किया, उन्होंने नौसेना के अधिपति वीर कान्होजी आंग्रे को शाहु महाराज को अपना छत्रपति स्वीकार करने के लिए मना लिया..
और कारखानो में शस्त्रों की निर्मिति 4 गुना बढ़ा दी, बाजीराव की इन सभी तैयारियों से मुग़ल बादशाह अंजान था..
5. शक्तिशाली मुघलों से सीधी टक्कर लेने से पहले बाजीराव अपनी जबरदस्त युद्ध कला का परिचय देते हुए आस पास के निज़ामशाही, पोर्तुगीज, सिद्दी, बंगश पठान और गद्दार हिन्दू राजाओ को एक एक करके कुचलते गए..
6. इस बिच बुंदेलखंड पर बंगश पठान ने हमला कर दिया तो राज ने बाजीराव से मदद मांगी, बुंदेलखंड की लाज बचाने के उपकार में राजा ने बाजीराव को मस्तानी भेंट के रूप में दी..
7. बाजीराव ने सन् 1728 के पालखेड़ के मशहूर युद्ध में बिजली की गति से अश्वसेना का नेतृत्व करके पूरी क्रूर निज़ामशाही नेस्तनाबूत कर दी, निज़ाम अपनी डायरी में लिखता है, की उसकी रातों की नींद हराम हो गयी है, उसे बाजीराव के भयानक ख्वाब आते है..
यह पालखेड का युद्ध दुनिया के 5 सबसे हैरतंगेज युद्धों में शुमार है, जिसकी रणनीति को हिटलर ने रूस के खिलाफ अपनाया था..
8. अब बारी मुग़लिया बादशाह मुहम्मद शाह की थी, बाजीराव 4 लाख की सेना लेकर दिल्ली के तख्त की तरफ कूच कर गए,
जब तक बादशाह बाजीराव की युद्धनीति समझ पाता, बाजीराव की अश्वसेना मुग़लिया सल्तनत में त्राहि त्राहि मचा रही थी..
बादशाह के इतिहासकार लिखते है,
मैदान में जंग में बाजीराव की ‘हर हर महादेव’ की सिंह गर्जना सुनकर मुग़लिया सेना दोगुनी बड़ी होकर भी दहल जाती थी..
9. महाराज पृथ्वीराज चौहान के पुरे 500 सालों बाद पहली बार दिल्ली के तख्त पर बैठा कोई बादशाह या सुलतान किसी पराक्रमी हिन्दू सेनापति के सामने लाचार और बेबस नजर आ रहा था..
इस तरह अपने अतुलनीय पराक्रम और साहस से ‘बाजीराव दी ग्रेट’ ने पूरे हिन्दुस्तान से मुघलो को जड़ से उखाड़ फेका..
मुग़लों का सर्वनाश करने वाले बाजीराव को राजपूत राजाओं ने ‘मुग़ल वंश संहारक’ के खिताब से नवाजा..
10. जिस मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने शिवाजी महाराज के परम् प्रतापी पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज की तड़पा तड़पा कर हत्या की थी,
बाजीराव ने उस हत्या करने वाले को और उसके सभी बेटों को ढूंढ कर उसी प्रकार तड़पा तड़पा कर मार के संभाजी महाराज की क्रूर हत्या का बदला लिया,
ताकि कोई भी मुग़ल बादशाह किसी हिन्दू राजा की हत्या करने से पहले सौ बार सोचे..
11. अब पहली बार भारतवर्ष में हरे चाँद सितारे की जगह भगवा फहराया जा रहा था..
जिस हिंदवी स्वराज्य की शिवाजी महाराज ने प्रतिकूल परिस्थितियों में नींव रखी थी, वह अब पूर्व में कटक से लेकर उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान से सटे अटक से लेकर तक फ़ैल गया था,
दक्षिण में कावेरी से लेकर उत्तर में सिंधु नदी तक भगवा परचम शान से लहरा रहा था..
ईरानी बादशाह भी बाजीराव से खौफजदा होने लगा था.
बाजीराव अब विधर्मियों के लिए दहशत का दूसरा नाम बन गए थे,
बाजीराव के समर्पण के आदेश का खत पाकर ही, किसी भी नवाब, सुलतान या बादशाह की रूह काँप जाती थी..
बाजीराव ने समस्त भारतवर्ष में हिंदुओंकी जबरदस्त साख और धाक बना दी थी..
12. महज 6 जिलों तक सिमित हिंदवी स्वराज्य का विस्तार अब पुरे 28 लाख चौरस किलोमीटर तक हो चूका था..(वर्तमान भारत आज 32 लाख चौरस किलोमीटर है)
छत्रपति शिवाजी महाराज का स्वप्न ‘बाजीराव दी ग्रेट’ ने साकार कर दिया था,
मुग़लो की चंगुल से भारत माँ को मुक्त कर दिया गया और बाजीराव द्वारा ‘हिंदुपद पादशाही’ (मतलब हिंदुओंका शासन) की स्थापना कर दी गयी..
छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी आक्रमणकारी मुग़लों के खिलाफ जो युद्ध आरंभ किया था, उसका अंत ‘बाजीराव दी ग्रेट’ ने कर दिया..
13. दिल्ली की जगह अब पुणे भारत की राजनीति का केंद्र बन चूका था..
लाल किले की जगह ‘शनिवारवाड़ा’ भारत के शासक का निवासस्थान बन गया था..
14. अब बाजीराव ने खोई हुई राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्स्थापित करने का कार्यक्रम हाथ में ले लिया,
तोड़े गए हिन्दू मंदिरोंकी मरम्मत की जा रही थी,
जबरन धर्मपरिवर्तन किये हुए हिंदुओंकी घर वापसी शुरू हो गयी..
संस्कृत भाषा का सम्मान वापस आ रहा था
भारत का कोना कोना ‘हर हर महादेव’ की गर्जना से गूंज रहा था..
सालों के बाद प्रजा को अपना खुदका हिंदवी स्वराज मिल गया था..
15. बाजीराव ने आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए व्यापार, उद्योग और कृषि को विकसित करना शुरू कर दिया..
नए महामार्ग, व्यापारी शहर बसाये जा रहे थे,
शस्त्र भी विदेश में निर्यात हो रहे थे..
विदेशी व्यापार से भारत जबरदस्त मुनाफा कमाने लगा था..
अंग्रेज भी लिखते है, की उन्होंने भारतियों को जहाज निर्मिति के बारे में जितना सिखाया है उससे ज्यादा वे खुद बाजीराव के कारीगरों से सीखे है..
आश्चर्य की बात है की, बाजीराव के शासन काल में भारत दुनिया का सबसे अमीर देश बन चूका था, विश्व् GDP में भारत की हिस्सेदारी पुरे 33% थी..(आज महाशक्ति अमेरिका का हिस्सा 23% है)
विदेशी पर्यटक भी भारत के इस दौर को स्वर्णयुग से कम नही समझते थे..
प्रजा खुशहाल और संपन्न हो गयी थी,
इस बारे में लार्ड मेकॉले का ब्रिटिश संसद में संबोधन इस बात की पुष्टि करता है..
16. अपने महज 20 सालो के कार्यकाल में ‘बाजीराव दी ग्रेट’ एक वीर सेनापति और कुशल कुटनितिज्ञ के साथ साथ एक प्रजाहितदक्ष शासक भी साबित हुए थे..
आजीवन बाजीराव छत्रपति के वफादार और सेवक बनकर ही पेशवा पद संभालते रहे..
17. परन्तु दुर्भाग्य से सन् 1740 में महज 40 साल की आयु में इंदौर के पास बाजीराव का कड़ी धुप में लगातार 14 घन्टे घोडसवारी करने के कारण उष्माघात से अचानक दुःखद निधन हो गया..
इस वीर योद्धा को किसी का शस्त्र भी नही मार सका था, उसे काल के अचानक आघात ने समाप्त कर दिया..
उनके बाद उनके पुत्र बालाजी बाजीराव पेशवा ने भी उनका विजयी अभियान चालु रखा..
18. ‘बाजीराव दी ग्रेट’ को भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है, पर ऐसा कह के हम उलटा नेपोलियन का सम्मान बढ़ा रहे है..
नेपोलियन का साम्राज्य बाजीराव के इक-तिहाई भी नही था..
जहा नेपोलियन अंग्रेजो से ‘वाटरलू’ की लड़ाई हारकर कैद में ही मर गया,
वहा ‘पेशवा बाजीराव’ सभी 41 युद्ध जीत कर आजीवन ‘अपराजित योद्धा’ कहलाये..
बिजली सी गति, शेर सा साहस और लोमड़ी जैसी चालाकी बाजीराव की पहचान थे..
बाजीराव के युद्धनीति आज कई विदेशी युनिवेर्सिटीओं में पढ़ाई जाती है..
19. अंग्रेज गवर्नर रॉबर्ट क्लाइव्ह ये कबूल करता है की,
"अगर बाजीराव 15-20 साल और जीवित रहते या उनकी अगली पीढ़िया भी ऐसा ही पराक्रम दिखाती तो अंग्रेजों का भारत जितने का सपना केवल सपना ही रह जाता",
अगर सच में ऐसा होता तो आज भारत कहा से कहा होता..
20. पंडित नेहरू जो भारत को अंग्रेजों के चश्मे से देखा करते थे, वो भी अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखते है,
"अगर आधुनिक भारत में किसी शासकों के पास अपने राज्य तक मर्यादित न होकर, राष्ट्रीय नीति या सोच थी तो वे केवल मराठे थे, खासकर पेशवा बाजीराव"..
21. आज हम आम भाषा में जो मुहावरे सुनते है जैसे ‘जान की बाजी लगाना’ या ‘बाजीगर’, ये मुहावरे वीर बाजीराव के नाम के ही रूपक है..
इतिहास में कई योद्धा आते और चले जाते है,
पर वीर ‘बाजीराव दी ग्रेट’ जैसे कुछ की वीर योद्धा होते है, जो काल के पटल पर अपनी अमीट छाप छोड़ जाते है..
22. इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद अगर ‘बाजीराव दी ग्रेट’ की ओर संकीर्ण दृष्टीकोण से देखा जाए तो अपने तरफ से यह एहसान फरामोशी होगी..
हा वे मराठा पेशवा थे, पर उनकी राष्ट्रीय निति थी,
हा वे मराठा पेशवा थे, पर उन्होंने बहोत से राजपूत, बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल, जाट और कई अन्य सरदारो का भी सहयोग लिया और उनको सहयोग भी दिया..
हा वे मराठा पेशवा थे पर उनकी सेना और प्रशासन में सभी जातियों का आदर था,
युद्ध के बाद वे सेना के साथ बैठकर खाना खाते थे..
इसलिए बाजीराव को केवल मराठा पेशवा या महाराष्ट्र प्रदेश या किसी जाती तक सिमित करना जराभी उचित नही,
उनकी महान शख्सियत सभी मतभेदों को लांघने ने सक्षम है..
आखिर बाजीराव लड़े तो भारत के लिए, हिंदुपद पादशाही की स्थापना के लिए..!!
23. पर अंग्रेजो ने मार्क्सवादी इतिहासकारों द्वारा को इस महान बाजीराव के चरित्र को कलंकित करने का प्रयास किया, उनकी उपलब्धियों को निचा दिखाने के लिए, बस एक अय्याश के रूप में पेश किया गया..
अंग्रेजों ने हमेशा मराठों को लुटेरा ही बताया है,
और निज़ाम, टीपू और मुग़लों को अच्छे शासकों के रूप में दिखाया गया है,
यही बात आज के स्कुल के पाठ्यक्रम में बच्चों को पढ़ाकर उनका बुद्धिभेद किया जा रहा है,
भारत के सच्चे नायकों की जगह