मैं एक महिला हूँ , और आज मुझे इस समाज को स्पष ्ट करना हैं की मैं कमज़ोर नहीं हूँ l

श्रुति द्विवेदी, अध्यापिका ग्रैड्स इंटरनैशनल स्कूल
ग्रेटर नोएडा

संस्कार ,संस्कृति ,मर्यादा ,लिहाज़ , रिश्ते ये सभी शब्द मेरे लिए ही निर्मित किये गए हैंl मैंने सहर्ष इन सामाजिक दायित्यों को समझा स्वीकारा और अत्यंत आनंद के साथ इसको अपने जीवन में ढाला l मैंने धरती की तरह बड़े धैर्य से तुम्हारा ख्याल रखा , तुम्हारा पालन पोषण किया और आजीवन करूँगी l मैं यशोदा के रूप में मातृत्व की पराकाष्ठा हूँ , स्वाभिमान में सीता हूँ , अगर प्रेम की परिभाषा बनना हो तो राधा हूँ , मैं तुम्हारी कलाई मे हक़ से बंधी हुई राखी हूँ l इतिहास साक्षी हैं की मैंने हमेशा अपने आपको तुम्हारे लिए समर्पित किया है l

लेकिन शायद ये समाज भूल गया हैं की मैंने अपने स्वाभिमान के साथ समझौता ना कभी किया हैं और ना कभी करूँगी l जब जब मुझ पर किसी दुर्योधन ने बुरी नजर डाली हैं तब तब ऐसे अनगिनत दुर्योधनों का वंश नाश हुआ हैं l कुरुक्षेत्र की लहू लुहान मिट्टी इस बात की साक्षी है l इस बात का जिक्र मैंने इस लिए किया ताकि तुम्हे याद रहें ताकि तुम्हारे नजरों में सभी महिलाओ के लिए आदर एवं सम्मान हो , तुम किसी निर्भया को निर्बल समझने की गलती मत करना l तुम्हारे साथ साथ सम्पूर्ण समाज को ऐसे जघन्य अपराध का फल भोगना ही पड़ेगा l मैं स्वयं दुर्गा बन कर तुम्हारा संघार करने का साहस रखती हूँl स्मरण रहे मैं कमज़ोर नहीं हूँl मैं स्वयं शक्ति की परिभाषा हूँ l

मैंने हर क्षेत्र में अपने आप को साबित किया है , और आगे भी करूँगी l मैंने अकेले ही लक्ष्मीबाई बन कर लोहा लिया है l मुझे कैद कर के रखने की कोई नाकामयाब कोशिश तुम ना करना , क्योंकि कल्पना चावला बन कर मैंने ऐसी उड़ान भरी की अंतरिक्ष तक पहुंच गई l मैंने सिर्फ तुम्हारे घर की रसोई ही नहीं संभाली , मैं देश की प्रधानमंत्री , विदेशमंत्री , रक्षामंत्री एवं वित्तमंत्री भी बनी l जहाँ जहाँ नजर उठा कर देखोगे , तुम मुझे पाओगे , ससम्मान , निडर , आजाद , एवं आत्मनिर्भर l एक बार फिर दोहराती हूँ की मैं….. कमज़ोर नहीं हूँl

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर तुम निष्चय ही मुझे शुभकामनाये दोगे l जिसके लिए मैं मुस्कुरा कर तुम्हारा आभार स्वीकार करती हूँ एवं तुमसे ये अनुरोध करती हूँ की जिन कन्याओं का तुम नवरात्री में पूजन करते हो , जिन चूड़ी से खनकते हुए हाथों से तुम्हारे घर के मंदिर का दीपक जलाया जाता है , जिन फ़िक्र भरी नजरो में तुम्हारे घर लौटने का इंतज़ार हमेशा होता है , उन नजरो में जिन्दगी को जीने और उसे जीतने की जिदद का सम्मान सिर्फ एक दिन के लिए सीमित मत रखना , क्योंकि तुम्हारे लिए ना वो दिन देखती हैं ना रात , तुम पर न्योछावर करने के लिए तो उसे ये तमाम उम्र भी कम लगती है l तुम कोशिश करना की तुम्हारे आस पास जब भी किसी द्रौपदी की तरफ किसी दुष्शासन के हाथ बढ़े, तब तुम कृष्ण की तरह उसकी मर्यादा कि रक्षा करना l

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