NANAJI DESHMUKH – AN IDEAL PERSON OF INDIAN POLITY – AWDESH PANDEY

भारतीय राजनीति के आदर्श पुरुष: नाना जी देशमुख

11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के परभणी के कडोली गाँव मे जन्मे और अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित करने वाले संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे नाना जी देशमुख का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है. बचपन में ही माता पिता को खोने के बाद उनका लालन-पालन अपने मामा जी के यहाँ हुआ. संघ संस्थापक डा. हेडगेवार के संपर्क में आने के बाद उन्हे जैसे जीवन का लक्ष्य मिल गया. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में संघ कार्य का विस्तार करने के साथ ही उन्होने देश के बच्चों में राष्ट्र-समाज और भारतीय संस्कृति के प्रति जागृ्ति फैलाकर उत्तम गुणवत्ता वाली शिक्षा देने के लिये गोरखपुर में ही प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की. आज देशभर में ऐसे अनगिनत विद्यालय चल रहे हैं और इन विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करके निकले विद्यार्थी राष्ट्र और समाज के विकास के लिये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं.

1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के बाद नाना जी को उत्तर प्रदेश का दायित्व सौंपा गया. भारत में पहली गैर काँग्रेसी सरकार बनवाने का श्रेय नाना जी को ही है. जेपी, लोहिया जैसे नेताओं के साथ मिलकर उन्होने इन्दिरा गाँधी के कुशासन और आपातकाल को चुनौती दी. बाद में 1977 में बनी पहली गैर काँग्रेसी सरकार में उन्हे मंत्रीपद का दायित्व संभालने का अवसर मिला, किन्तु उनका यह मानना था कि 60 वर्ष के पश्चात व्यक्ति को समाज का ही कार्य करना चाहिये न कि राजनीति और उन्होने स्वयं मंत्री पद अस्वीकार करके इसका उदाहरण पेश किया. आज जब आयु के 80वें पड़ाव में खड़े लोग जब राजनीति में अपनी महात्वाकांक्षा के कारण कुछ भूमिका तलाशते हुए नज़र आते हैं तब नाना जी के त्याग का अनायाश स्मरण हो जाता है.

उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार बलरामपुर के जानकीनगर को नाना जी अपनी कर्मस्थली चुना था. वहाँ पहुँचने के पश्चात उन्होने वहाँ के निवासियों को देव स्वरूप बता उनकी सेवा में अपना जीवन बिताने का निश्चय किया. उस समय वह बलरामपुर के सांसद थे और चुनाव के पूर्व उन्होने बलरामपुर के लोगों को वचन दिया था कि वह अब उन लोगों का जीवन स्तर सुधार कर ही अन्यत्र कहीँ जायेंगे. अभी बीते दिनों बलरामपुर के जयप्रभा ग्राम (जानकीनगर) जाने का सौभाग्य मिला. 80 के दशक में जो कार्य वहाँ नाना जी ने किया उसे देखकर नाना जी की आधुनिक एवं वैग्यानिक सोच का पता चलता है. नाना जी जयप्रभा ग्राम में सरकारी बैंक, डाकघर, टेलीफोन, सरस्वती विद्यालय एवं कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयोगों को स्थापित किया. नाना जी ने पाया कि उस क्षेत्र की मूल समस्या सिंचाई सुविधा का न होना था. अत: उन्होने बैंक से किसानों को कर्ज़ दिलाकर जमीन में 70-80 हज़ार नलकूप लगवाये, जिससे किसानों की मेहनत उनकी फसल बिन पानी बर्बाद न हो. आज भी बलरामपुर गन्ने के उत्पादन में अग्रणी है, जिससे वहाँ के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरी है. किसानों में आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिये नाना जी ने वहाँ एक सुंदर मंदिर भी बनवाया, जिसमें भारत के सभी तीर्थस्थलों का लघु चित्रण किया गया है. आज भी जय-प्रभा ग्राम संघ व अन्य समाज से जुड़े संगठनों के लिये प्रेरणाश्रोत है.

महाराष्ट्र के बीड और उत्तर प्रदेश के गोण्डा-बलरामपुर में कार्य करने के पश्चात जब उन्होने पूर्ण राजनीतिक वनवास लिया तो उन्होने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की वनवास स्थली चित्रकूट को अपने कार्य के लिये चुना और जीवन के शेष वर्ष वहीं बिताने का निश्चय किया. उनका कहना था कि हम अपने लिए नही, अपनों के लिए हैं, अपने वे हैं जो पीडि़त व उपेक्षित हैं. चित्रकूट में उन्होने देश के प्रथम ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. उनका स्वप्न था हर हाथ को काम और हर खेत को पानी.

ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने को स्वप्न आँखों में सँजोये नाना जी का देहावसान 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में हुआ. अपना जीवन भारत के लोगों और तत्पश्चात मृत शरीर भी अखिल भारतीय आर्युविग्यान संस्थान को दान कर उन्होने भारत की ऋषि परंपरा का अनुपम उदाहरण हमारे सामने रखा.

मौन तपस्वी साधक बनकर हिमगिरि सा चुप चाप गले. इन पक्तियों को अपने जीवन में उतार राष्ट्र का कार्य करने वाले नाना जी से जब थोड़ा बहुत कार्य कर प्रचार पाने वाले समाजसेवियों को देखता हूँ, तो नाना जी की महानता को अनगिनत बार नमन करने को मन करता है.

अवधेश पाण्डेय
सी-185, सेक्टर-37, ग्रेटर नोएडा.
मो. 91-99580-92091

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