साधु,संस्कृति,राष्ट्रवादिता , य मुना एवं कन्हैया—-श्रवण शर्मा

दिनांक ११ मार्च से यमुना के किनारे श्री श्री रविशंकर द्वारा स्थापित संस्था `आर्ट ऑफ लीविंग`द्वारा`विश्व संस्कृति उत्सव`का आयोजन किया जा रहा है .यह भव्य आयोजन तीन दिन चलेगा और इसमें विश्व तथा भारत की विभिन्न संस्कृतियों को रूपायित करने वालें कार्यक्रमों को बड़े स्तर पर दिखाया जा रहा है.इस कार्यक्रम के प्रारम्भ होने से पूर्व बड़ा विवाद उत्पन्न कर इसे रूकवाने की कोशिश, कुछ लोगों द्वारा की गयी और वे यमुना में संभावित प्रदूषण के नाम पर राष्ट्रिय हरित प्राधिकरण गये.अंततः प्राधिकरण ने ठीक एक दिन पहले ५ करोड का प्रतिकर या दंड लगाते हुए आयोजन को अनुमति दे दी.प्रदूषण की चिन्ता करने वाले ये लोग कौन हैं और इनकी चिंताएं कितनी सही है, यह तो स्पष्ट नहीं है,पर इतना साफ है की मीडिया और चैनल्स ने इसआयोजन के विरूद्ध प्रचार करने में कोई कमी नहीं उठा रखी है.यहां तक कि जब आयोजन से पहले जब बारिश होने लगी तो इस गैंग के पत्रकारों ने ट्वीट कर इस आयोजन की विफलता की का ज़शन मनाना शुरू कर दियाऔर कुछ को `अन्य शक्ति `का अस्तित्व भी याद आ गया .आखिर ये लोग इस आयोजन के विरुद्ध इतने पूर्वाग्रही क्यों हैं?.यह तो स्पष्ट है कि इन लोगों को भारतीय संस्कृति , धर्म परम्पराओं सेमोटे तौर पर बेहद चिढ है और ये मिल कर एक एजंडे के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं.जहाँ तक आयोजन की बात है ,हम इस बात से सहमत नहीं है कि संतों को इतने आडम्बर और प्रचारोंमुख कार्यक्रम आयोजित करने चाहियें.भारतीय ऋषि परम्परा में त्याग और तप का महत्व है ,यह आरण्यक परंपरा है. पहले ऋषि और मुनि थे, बाद में साधु और संयासी आये. परिव्राजक स्वामी दयानंद और स्वामी विवेकानंद आये और अब?आज के साधु या सन्यासी में प्रचार की इतनी भूख क्यों है , क्यों इतने अधिक शिष्य और साधन चाहियें. यह दुनिया तो किसी की सुनती नहीं है , ना बुद्ध की मानी ,ना ईशा की ना कबीर की , ना नानक की . इतने गुरु तो पहले से हैं ,अब इस इंसान को कितने गुरु औए अवतार चाहियें?आडम्बर से सनातन धर्म को हानि होती है .अब यमुना पर आयें, दिल्ली में यमुना को नदी कहना उचित नहीं है , यमुना का पानी तो पहले ही कम हो जाता है. दिल्ली में उसे भी निकाल कर सीवर का पानी डाल दिया जाता है. जो आगरा तक जाता है, अचानक मीडिया को यमुना की याद आ गयी.यमुना के किनारे पर अवैध बस्तियों की भरमार है , कोई नहीं बोलता , क्या यह देश ठगों और धूर्तों का देश बनता जा रहा है ?मीडिया के ये लोग वही है जो अभी एक दिन पूर्व तक जेल से छूटने से पहले और बाद जेएन यू के छात्र नेता कन्हैया के साथ खड़े थे और उसे देश का महान् क्रांतिकारी बता रहे थे . वे अचानक कन्हैया से यमुना की और ऐसे भागे जैसे गिद्ध नये शव की औरभागते है .कन्हिया के नाम पर राष्ट्रवाद की नयी बहस शुरू की गयी, जिससे यह साफ की एक राष्ट्र के विचार को कमजोर करने के लिए एक बड़ी बोद्धिक बहस का माहौल बनाया जा रहा है,जो निश्चय ही किसी षडयत्र का हिस्सा है , जिसमें देश के राजनीतिक दल. कुछ छात्र और प्रोफेसर फंस रहें हैं. पढ़े लिखें और लालच में फंसे इंसानो को समझाना कठिन है.

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