सफेद कागज कविता संग्रह का विमोचन यमुना वि कास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अरुणवीर सिं ह ने किया

ग्रेटर नोएडा- पीसीएस अधिकारी शैलेन्द्र कुमार भाटिया के प्रथम हिंदी कविता संग्रह " सफेद कागज " का विमोचन युमना विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरुणवीर सिंह प्रधिकरण के सभागार में किया गया ।इस काव्य संग्रह में भिन्न-भिन्न विषयों पर लिखी 152 अनूठी कवितायें हैं।
इस पुस्तक में रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी बातें के अनुभवों को कविताओं के रूप में लिखा गया है।
डॉ अरुणवीर सिंह पुस्तक के विमोचन के अवसर कहा सफेद कागज कविता संग्रह में मेरा बजट, फ़ाइले , निर्भय, कचहरी ,,पेड़, तुम निःशब्द खड़े हो, किसान, अनदाता , ये बूंदे बदला ले रही है, स्त्री, आदि कविताएं उच्च कोटि की है। जो हमे चिंतन के लिए विवश करती है । यह तभी हो सकता है जो समाज की गहरी समझ रखता हो एवं स्वयं इस सब रूबरू हो। इस कविता संग्रह में व्यक्ति एव उसके आसपास घटित होने वाली घटनाओं के विषयों को अच्छे ढंग प्रस्तुत किया गया है। मानवीय संवेदनशीलता के साथ जिस ढंग स्व श्री भाटिया ने कवितायें रची है ,यह काबिले तारीफ है। खासतौर से स्त्री विमर्श व उसके उथान पर लिखी गयी कवितायें विशेष रूप से उलेखनीय है । और मुझे पूरा विश्वास है कि सफेद कागज कविता संग्रह व्यापक स्तर पढ़ी जाएंगी। में शैलेंद्र को उनकी इस रचना के लिए बधाई देता हूं और भविष्य की शुभकामनाएं देता हूँ। डॉ विधाकांत तिवारी ने इस पुस्तक की भूमिका लिखते हुए कहा है कि गांव,शहर, यथार्थ के विविध रूप, भ्रस्टाचार, अराजकता, भ्रष्टाचार, श्रमिक की दुर्दशा , मूल्यह्रास, जातिय अंहकार, न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था की विसंगति, कलाकारों का शोषण, शिक्षा क्षेत्र में पतन , स्त्री की मानसिकता, शोषण की पराधीनता का यथार्थ जैसे विषयों पर सफेद कागज दूसरा रागदरबारी प्रतीत होता है ।

डॉ कुश चतुर्वेदी इस काव्य संग्रह पर बोलते हुए फरमाते है," बापू, गांव, पेड़, गंगा ,किसान ,कचहरी, बेटियां, नारी, स्त्री ,माँ, पिता, अन्नदाता जैसी नाम हमारी जिंदगी का हिस्सा है । इन्ही भावो को पिरोकर शैलेन्द्र जी ने कविताएं बनाई है । ये सफेद कागज किताब अपनेआप में बहुत कुछ कहे जाती है। इस किताब में सभी 152 कविताओं पढ़ने एवम समझने, सहजने योग्य हैं "।
शैलेन्द्र जी को लोकसेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए "शोभना सम्मान" से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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