DO NOT WAIVE OFF LOAN , BUT INTEREST @arunjaitley

हरिश गुप्ता,पूर्व महासचिव वरिष्ठ नागरिक समाज, ग्रेटर नोएडा ।
हमारे देश मे आए दिन किसी न किसी संस्था या सरकारों के निर्वाचन चलते रहते हैं इसीलिए चुनावी आचार सहिंता की तलवार भी लटकी रहती है।भला हो शेषन जी का उनके कार्यकाल में निर्वाचन आयोग को वास्तविक ताकत मिली अन्यथा निर्वाचन आयोग रूलिंग पार्टी का ही पक्ष लेता था।शेषन जी के बाद से निर्वाचन आयोग को अपने करतवय एवं अधिकारों का बोध अच्छी तरह से हो गयाहै।यह बात दूसरी है कि वह निर्णय न ले।
निर्वाचन दोरान घोष- णाओ की बाढ आती है। सरकारें 5 वर्ष तक ऐसे निर्णय कयो नहीं लेती जिनहे उनहे निर्वाचन दोरान लेना पड़ता है। भाजपा दवारा उ प्र विधान सभा के चुनाव दोरान किसानो के कर्ज माफी का निर्णय लेना तर्क संगत नहीं है। जब उनके खेतों की सिंचाई हेतु आपको आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध करानी हैं ।आपदा के आने पर लिबरल फसल बीमा सुविधा कम प्रीमियम पर ही देनी है।बीज,उर्वरक एवं कीटनाशक ससती दर पर देना है।फसल का क्रय मूल्य बढ़ाकर महंगी दर पर उसकी उपज को क्रय करना भी है जिससे उसकी आय दोगुनी की जा सके। इस सबको करने के लिए धन चाहिए ।यह तभी संभव है जब अन्य सभी विकास योजनाओं जैसे शिक्षा, सवासथय, आने जाने के साधनों, पीने के पानी की योजनाओं को भुला दिया जाए और अच्छी कानून व्यवस्था करने हेतु भी संसाधनों के विकसित करने की ओर भी ध्यान न दिया जाए।यह कार्यक्रम भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसानों है भी जुड़े हैं । अतः इन्हें भी भगवान आसरे छोड़ना संभव नहीं है। भारत सरकार भी अकेले किसी प्रदेश को अन्य प्रदेशों की उपेक्षा कर आर्थिक मदद नहीं दे सकती है।
और लोन माफी का सिलसिला यदि चल जाता है तब हर आदमी यह सोचता है कि यदि सरकार को वोट लेना है तब लोन माफ करेगी । सरकार इस समय खेती के लोन के अलावा विद्यार्थी लोन, मुद्रा लोन , उद्योग लोन , कार, बस, भवन ,आदि अनेक प्रकार के लोन दे रही है। लोन भुगतान की समस्या हर जगह आ सकती है।
हमारा यही सुझाव है कि मूलधन लोन माफ नही होना चाहिए।एक फसल या कुछ फसलों के ब्याज को ही माफ करना चाहिए।

Share