ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया अंगना में फिर आजा रे

डॉ अभिषेक स्वामी, एसोसिएट प्रोफेसर
द्रोणाचार्य ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूशन्स , ग्रेटर नॉएडा

आज यानि २० मार्च २०१७ को विश्व गौरया दिवस के रूप में मनाया जाता है I घरों को अपनी चीं चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।

पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो इंसानी बच्चों इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है।

एक रिसर्च के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।
विश्व भर में अपनी पहचान रखने वाली इस गौरैया का विस्तार पूरे संसारमें देखने को मिलता है लेकिन पिछले कुछ सालों में इस चिड़िया कीमौजूदगी रहस्यमय तरीके से कम हुयी है। पतझड़ का मौसम हो यासर्दियों का यह पक्षी हम सालों साल से अपने बगीचों में अक्सर देखने केआदी रहे हैं । लेकिन अब सप्ताह के हिसाब से समय बीत जाता है औरइस भूरा पक्षी देखने को नहीं मिलता । इससे अनायास ही मुझे अपनेविद्यालय के उन पुराने दिनों की याद ताजा हो जातीहैजब मैनें महानहिन्दी कवियत्री महादेवी वर्मा की गौरैया नामक कविता पढी थी । उससमय यह अजूबे से कम नही था क्योंकि कविता राजा या किसी महाननेता के बारे में नहीं बल्कि एक साधारण से पक्षी को केंद्र में रखकर लिखीगयी थी । कवि सुब्रहमण्यम भारती ने भी कहा है ..आजादी की चिड़िया।.
यह चिड़िया शहरों. घरेलू बगीचों. घरों में खाली पडी जगहों या खेतों मेंअपना घर बनाती है और वहीं प्रजनन भी करती है । यह पक्षी अब शहरोंमें देखने को नहीं मिलता हालांकि कस्बों और गांवों में इसे पाया जासकता है । गौरैया को भले ही लोग <

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